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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 35)





अरुण वहां से गायब हो चुका था। थोड़ी दूर जाकर अनि ने रास्ता बदल दिया अब वह उसी दिशा में आगे बढ़ने लगा जहां उसने माइंस बिछा हुआ देखा था। क्रेकर के पॉवरफुल शॉक एब्जॉर्बर्स झटकों को काफी हद तक सोखकर सामान्य गति से आगे बढ़ रहा था। अचानक ही सामने एक गड्ढा आया, अनि ने घुमाने की कोशिश तो की मगर अगला पहिया गड्ढे में जाकर तेजी से बाहर निकल आया, मगर इससे उत्पन्न हुए झटके के कारण आशा का बैलेंस बिगड़ा और वो अनि से सट गयी। वह जानती थी कि उसका यूँ ही चिपके रहना अनि को बुरा लगेगा मगर उसने खुद को अनि से दूर करने की कोई कोशिश नहीं की।

"अब क्या मेरे से चिपके रहने का है क्या?" अनि ने थोड़ी देर तक इंतजार किया मगर जब आशा अपने पूर्व स्थान पर नहीं गयी तो फटाक से बोल पड़ा।

"अं… सॉरी सॉरी!" आशा को जैसे होश आया हो, वह पीछे सरक कर सीट के सबसे अंत में बैठ गयी।

"क्या निराशा जी! यूंही क्यों खेद प्रकट कर रहीं है? कहिये क्या दुःख है?" अनि ने सबकुछ जानने के बाद भी अनजान बनने का नाटक किया।

"कुछ नहीं विरुद्ध जी! सोच रही हूँ एक आध गट्ठर घास काट लूँ ताकि आपकी मुँह उसमें बिजी रहे और ….!"

"अरे वाह! आपने तो हमारे दिल की बात छीन ली? वैसे आप हमारे पेट की बात को कैसे समझ लेती हैं सच में बड़े जोर भूख लगा है यार!" अनि ने आशा की बात काटकर अपने पेट पर हाथ फिराते हुए बोला।

"अभी तुम्हारे खाली स्थान भैया पेट करेंगे तुम्हारा! पूरी तल रखी होगी उन्होनें!" आशा ने तल्ख लहजे में कहा।

"अरे हाँ! भैया से याद आया। तुम तो राखी भिजवाने वाली थी ना मुझे?" अनि ने मिरर में देखकर उसे घूरते हुए कहा।

"हाँ! सोचा तो था मगर आप तो मेरी हर आशा के विरुद्ध निकलते हैं। बताइए ऐसे कैसे चलेगा जीवन का सफर?" आशा ने मुँह बिचकाते हुए कहा।

"जैसे अभी चल रहा है!" अनि ने हँसते हुए कहा।

'काश! ऐसे ही चल जाता!' आशा धीरे से बुदबुदाई।

"कुछ कहा तुमने?" अनि ने उसकी ओर देखते हुए पूछा।

"अभी अपनी ड्राइविंग पे ध्यान दो विरुद्ध जी, वरना बाद में मुझे भाषण सुनाने लगोगे।" कहने के साथ ही आशा ने मुँह फेर लिया।

"धत्त तेरी.. न घास के रहे न पात के, भले पानी पिये घाट घाट के!" अनि ने दुखी होने का नाटक कड़ते हुए कहा।

"तुम्हें यहां बकवास करनी है? जल्दी चलो! आज की रात ब्लैंक की आखिरी रात होनी चाहिए।" आशा ने सख्त लहजे में कहा, उसके शब्दों में ब्लैंक के खिलाफ नफरत साफ झलक रही थी।

"रे दादा! इस पे भी मिस्टर बर्बादी का भूत सवार हो गया क्या?" कहते हुए अनि अपना सिर खुजलाने लगा। क्रेकर तेजी से आगे बढ़ता हुआ उस क्षेत्र के पास पहुँचता जा रहा था, जहां वह काला जंगल था।

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इधर मेघना को धीरे धीरे होश आ रहा था, उसके हाथ पैर आजाद थे, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कोई उसका हाथ पैर खुला रखकर उसे वहां से आसानी से भाग जाने का अवसर क्यों देगा। वह उठ खड़ी हुई उसने देखा वह किसी छोटे से कमरे में बंद थी।  खूब ऊपर एक रोशनदान नजर आ रही थी जहां से बस नाम भर का प्रकाश मुश्किल से आ पा रहा था। मेघना का इस कमरे में दम सा घुटने लगा, उसकी साँसे अटकने लगी, उसने खुद पर संयम रखा किसी तरह खुद को वहां से निकालने की कोशिश करने लगीं मगर उसकी हर कोशिश नाकाम रही।  उसके कुछ जख्म अभी भी नहीं सूखे थे और दिल के जख्म तो पहले से ही हरे हो चुके थे।

'काश! आदि तुम यहाँ होते!' एक पल को मेघना के जेहन में ये ख्याल आया, वह वहीं जमीन पर बैठ गयी।

"न.. नहीं! नहीं! नहीं! मेरे पापा ने मुझे एकशेरनी की तरह पाला है, और शेरनी जंगल में सबसे सुपीरियर होती है, उसे किसी के मदद की नीड नहीं!" अचानक ही उत्पन्न हुए इस विचार इन उसके तन बदन में क्रांति मचा दी। उसने अपने जबड़े भींचे और फिर वहां से निकलने की कोशिश करने लगी।

वह कमरा पूरी तरह से सुनसान था, साथ ही साथ वह वर्गाकार आकृति का बना हुआ था जिस कारण उसपर किसी तरह सरककर चढ़ पाना भी मुमकिन नहीं था।

"सोच मेघा कुछ तो सोच! आखिर यहां तेरा कोई क्या ही कर लेगा? तुझसे यहां किसी को क्या चाहिए होगा? क्या लाया गया है तुझे सोच! सोच!" मेघना अपने सिर को पकड़े हुए सोच में डूब जाती है।

"आखिर मुझे यहाँ कैसे डाला गया होगा? ऊपर के रास्ते से? नहीं ऊपर देखने से तो ऐसा नहीं लगता। चारों ओर की दीवारें काली हैं इसलिए कुछ भी समझ नहीं आ रहा आखिर मैं करूँ तो क्या करूँ?" मेघना का दिमाग काफी तेजी से काम करने लगा। वैसे ही उस माहौल में होने के कारण उसका सिर काफी बोझिल लग रहा था।

"दरवाजा यही कहीं है पर ढूंढू कैसे? यहां तो कुछ होने का निशान भी नहीं है! कौन कैसे किस तरफ से घूम गया कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है।" मेघना काफी उलझ गए थी, अब वह समझ गयी थी कि उसके हाथ पैर खुले हुए क्यों थे क्योंकि वहां से निकल पाना वैसे भी नियर इम्पॉसिबल था।

"साउंड टेस्टिंग! हां इसे आजमाया जा सकता है। क्योंकि नॉर्मली दीवार काफी मजबूत होती है जिस कारण उससे कुछ टकराने पर अलग आवाज आती है और दरवाजा उसके मुकाबले अधिक ध्वनि उत्पन्न करता है, क्योंकि मुख्यतः सभी दरवाजे दीवार से पतले ही बनाये जाते हैं। जिनमें आजकल धात्विक दरवाजे ही अधिक प्रचलन में हैं।" मेघना के दिमाग में यह ख्याल आते ही उसने चारों ओर की दीवार को पीटना शुरू कर दिया मगर आश्चर्य सभी ओर से एक जैसी आवाजे ही आ रही थी।

"ये कैसा जाल है? अब वही एक रोशनदान बाकी है जहां तक जा पाना मुमकिन ही नहीं है। कोई इस चिकनी दीवार से चिपकते हुए ऊपर तक जा ही नहीं सकता। कहीं मैं ही तो ज्यादा नहीं सोच रही, हो सकता है वो केवल लाइट और एयर के लिए हो। अरे ये क्या…!" अचानक मेघना का ध्यान उस लाल धब्बे पर पड़ा जो उस काली दीवार पे बना हुआ था। वो जमीन से लगभग नौ-दस फ़ीट ऊँचा था। "हो न हो यही कोई रास्ता है!" कहते हुए मेघना ने उछाल भरी मगर वो उस निशान से कुछ इंच नीचे तक ही पहुँच पाई। उसने कई प्रयास किये मगर असफल रही, थकान के कारण आँखे बोझिल होती जा रही थी। वह फर्श पर बैठकर अपने जूते खोलने लगी। और फिर उठ खड़ी हुई, जूता उस निशान तक पहुँच गया, उस लाल निशान पर जूते का वार पड़ते ही उस ओर की दीवार हट गई। मेघना तेजी से वहां से बाहर निकली, उसे चारों ओर हल्का कृत्रिम उजाला नजर आ रहा था, वह तेजी से वहां से निकलना चाहती थी मगर किसी पारदर्शी दीवार से टकरा गई, मेघना का सिर घूम गया वह नीचे गिर गयी। उसके सामने कांच की मोटी पारदर्शी दीवार थी, जिसमें लाइट का परावर्तन नहीं हो रहा था, जिस कारण वह स्पष्टया दिखाई नहीं दे रहा था। तभी उस रूम के बाहर दो मास्कधारियो ने प्रवेश किया।

"हाहाहा मैं जानती थी तू तेज चिड़िया है, इसलिए तेरे लिए स्पेशल प्लान कर रखा है।" काँच के दीवार को छूते हुए वह नकाबपोश कुटिल हँसी हँसते हुए बोली।

"तुम्हें मुझसे क्या चाहिए?" मेघना ने सपाट स्वर में पूछा।

"बता रही हूँ मेरी जान! सब बता रही हूँ। मुझे तेरी जान चाहिए.. हाहाहा..!" जोरदार अट्टहास लगाते हुए वो बोली। "तुम लोग यहां से जाओ!" उसने अपने साथ आये नकाबपोशों से कहा, वे आज्ञाकारी बालक की तरह उसकी बात मानकर वहां से चले गए।

"तुम यही सोच रही हो न कि मैं तुम्हें यहां क्यों लाई? मेरा क्या मकसद है? मैं क्या चाहती हूं ब्लाह ब्लाह ब्लाह…! देखो जानेमन हमें चाहिए तुम्हारी जान, क्योंकि जो हमें चाहिए उसके लिए तुम्हारी जान बेहद जरूरी है।" वो कुटिलता भरे स्वर लिए बड़े तल्ख अंदाज़ में बोली।

"तू कौन है कुतिया की बच्ची! एक बार मुझे बाहर तो निकलने दे, फिर तुझे छठी का दूध याद दिलाती हूँ।" मेघना गुस्से से भड़कते हुए बोली।

"बाहर निकल के क्या करेगी तू? जब मैंने तेरा सब छीन लिया तब तू मुझे नहीं रोक पाई तो अब ये जान तो बस बेवजह ही है जानी!" उस नकाबपोश लड़की के अपना नकाब उतारते हुए कहा। "और रही बात छठी के दूध की, तो वो मुझे अच्छे से याद है।"

"तुम…..म!" मेघना कि आँखे फटी की फटी रह गईं।

"क्या हुआ जानी! हाहाहा…!" भयंकर अट्ठहास करते हुए उसने दुबारा नकाब पहन लिया और वहां से निकल गयी। मेघना उसे देखकर वहीं जमीन पर गिर गयी, फेफड़ो में ऑक्सिजन खत्म हो चुकी थी, जिस कारण उसका शरीर अब साथ नहीं दे रहा था, वो बेहोश होती चली गयी।

क्रमशः….


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Shayad wo mask wali ladki siya hai. Khair dekhte hai aage kya hoga.

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